Proprietor – वह व्यक्ति जो अकेला व्यापार में पैसा लगाता है, लाभ या हानि का वह अकेला ज़िम्मेदार होता है, Proprietor कहलाता है.
Partners – जब 2 या 2 से अधिक लोग Business में पैसा लगाते हैं, Partners कहलाते हैं. लाभ या हानि के वे सभी जिम्मेदार होते हैं. किसी Business में 20 तक Partners हो सकते हैं.
Shareholder – जब 20 से ज्यादा लोग किसी Business में हिस्सेदार होते हैं तो वे Shareholders कहलाते हैं.
Capital – व्यापार के मालिक द्वारा व्यापार व्यापार प्रारंभ करते समय जो पैसे, संपत्ति या माल Business में लगाया जाता है, उसे ही Capital कहते हैं. व्यापार का उसके मालिक से अलग अस्तित्व माना गया है. इसलिए Proprietor का अलग Capital Account खोला जाता है. Capital Account को व्यापार का दायित्व माना जाता है.
Drawing – व्यापार के मालिक द्वारा अपने निजी Use के लिए व्यापार से जो पैसे या माल निकाला जाता है उसे ही Drawing कहते हैं. जैसे मैंने अपने घर पर 2000 रूपये दिए तो उसे हम Drawing कहेंगे.
Goods (माल) – व्यापारी जिस वस्तु का क्रय – विक्रय करता है उसे ही माल कहा जाता है. जैसे कपडे के व्यापारी के लिए कपडा माल हुआ.
Purchase – जब व्यापारी बेचने के उद्देश्य से माल खरीदता है तो उसे Purchase कहा जाता है और उसके लिए Purchase Account खोला जाता है. मान लो कपडे का व्यापारी कपडा खरीदता है तो यह उसके लिए Purchase होगी और यदि Furniture खरीदता है तो यह उसके Purchase नहीं होगी.
Sales – जब व्यापारी द्वारा माल बेचा जाता है तो उसे Sale कहते हैं और इसके लिए Sales Account खोला जाता है.
Purchase Return – जब ख़रीदे गए माल में से कुछ माल विभिन्न कारणों से वापस कर दिया जाता है तो उसको हम क्रय वापसी (Purchase Return/Return Outward) कहते हैं.
Sales Return – जब बेचे गए माल में से कुछ माल कुछ कारणों से वापिस आ जाता है तो इसे हम विक्रय वापसी (Sale Return/Return Inward) कहते हैं.
Purchase Return या Sales Return के कारण –
- माल घटिया हो.
- माल आदेशानुसार न हो (आम के जगह संतरे भेज दिए हों)
- माल ख़राब हो / टूटा – फूटा हो
- माल Order से ज्यादा हो (5 किलो की जगह 8 किलो भेज दिया हो)
- माल तय समय में न आया हो. (3 दिन का वादा करके उससे ज्यादा Time में आया हो)
Stock – गोदाम में रखा माल व्यापारी का Stock कहलाता है. साल के Last में यानि 31 March को जो माल हमारे गोदाम या दुकान में रखा होता है वह Closing Stock कहलाता है. यही माल अगले दिन 1 April को Opening Stock कहलाता है.
लेनदार (Creditor) – वह व्यक्ति या संस्था जो किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को उधार पर माल या सेवाएं बेचती है वो लेनदार (Creditor) कहलाते हैं. यानि जिनको हमें पैसे देने हैं या जिनसे हमने उधार माल ख़रीदा है तो हम उसे Creditor कहते हैं.
देनदार (Debtors) – जिनको हम उधार माल बेचते हैं या जिनसे हमें पैसा लेना है तो वे Debtors हुए.
Assets (संपत्ति) – वे वस्तुयें जो व्यापार के संचालन में Help करती हैं लेकिन हम उनका लेनदेन नहीं करते, Assets कहलाती हैं. जैसे Furniture, Machine आदि. Assets निम्न प्रकार की होती हैं –
- Fixed Assets – वे वस्तुएं जो व्यापार में लम्बे समय तक काम में आती हैं जैसे Furniture, Building, आदि Fixed Assets कहलाते हैं.
- Current Assets – ये वे Assets होती हैं जो एक साल के Period तक ही राखी जाती हैं. जैसे Bill Receivable, Debtors आदि.
Liabilities (दायित्व) – वह धन जो व्यापार को दूसरों को देना है, दायित्व कह्ताला है. ये 2 प्रकार के होते हैं –
- Short Term Liabilities – जो पैसा हमें दूसरों को एक साल के अन्दर – अन्दर देना है, उसे Short Term Liabilities या Current Liabilities कहते हैं जैसे Bill Payable, Short Term Loan, Bank Overdraft आदि.
- Long Term Liabilities – जो भुगतान हमें एक लम्बी अवधि में करना है यानि एक साल के बाद, उसे हम Long Term Liabilities कहते हैं जैसे कोई लम्बा Loan.
Expenses – हमारे माल के उत्पादन और उसे बेचने में जो भी खर्चे होते हैं वो व्यय (Expenses) कहलाते है। जैसे Electricity Expenses, Rent, Salary आदि.
व्यय (Expenses) मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –
- प्रत्यक्ष व्यय (Direct Expenses) – ये वो खर्चे होते हैं जिन्हें व्यापारी माल खरीदते Time या माल की Manufacturing करते Time करता है. Direct Expenses वस्तु की लागत का एक हिस्सा होता है. जैसे गाड़ी भाड़ा, मजदूरी, फैक्ट्री की बिजली आदि Direct Expenses के अंतर्गत आते हैं.
- अप्रत्यक्ष व्यय (Indirect Expenses) – वो सभी expenses जिनका संबध वस्तु के क्रय या उसके निर्माण से ना होकर वस्तु की बिक्री या Office संबधी होता है, Indirect Expenses कहलाते हैं. जैसे विज्ञापन, विक्रय पर गाड़ी भाड़ा, बिजली का बिल, Discount आदि.
Revenue – Goods या Service को Sale करने पर, या किसी अन्य तरीके जैसे Rent, Interest आदि से जो प्राप्ति होती है उसे ही Revenue कहते हैं.
Income – Revenue में से Expenses घटाने पर जो प्राप्त होता है वह व्यापार की Income है. Income 2 प्रकार की होती है –
- Direct Income – व्यापार में माल बेचने से हमें जो आय होती है, वह Direct Income कहलाती है. जैसे कपडे के व्यापारी को कपडे बेचकर होने वाली आय.
- Indirect Income – Main Income Source के अलावा होने वाली आय Indirect Income कहलाती है जैसे कपडे के व्यापारी को किराया प्राप्त होता है तो यह व्यापारी की Indirect Income हुई.
Expenditure – वे खर्चे जिनसे हमें आय प्राप्त होती है, Expenditure कहलाते हैं जैसे Machine या Furniture का खरीदी.
Discount – व्यापार में दी जाने वाली छूट. यह 2 प्रकार से दी जाती है –
- Trade Discount
- Discount